किश्तवाड़ का कहर: मलबे में दबा मातम, हर चीख एक कहानी

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले के चशोटी गांव में बादल फटने की विनाशकारी घटना को 24 घंटे बीत चुके हैं।
एनडीआरएफ, सेना, पुलिस और स्थानीय प्रशासन लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं, लेकिन मलबे में अभी भी 200 से ज़्यादा लोगों के दबे होने की आशंका जताई जा रही है।
अब तक 45 मौतों की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें से केवल 8-10 शवों की ही पहचान हो सकी है।

रेस्क्यू ऑपरेशन जारी, संसाधनों की भारी कमी

एनडीआरएफ के एक अधिकारी के मुताबिक, “हमारे पास फिलहाल एक ही JCB मशीन है। जब तक खुदाई पूरी नहीं होती, यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि कितने लोग दबे हैं।”

बीती रात 2 बजे तक रेस्क्यू ऑपरेशन जारी रहा। अब तक लगभग 100 लोगों को मलबे से जिंदा निकाला जा चुका है, जिनमें से कई की हालत गंभीर है।

दो CISF जवान शहीद, पीएम मोदी ने ली स्थिति की जानकारी

आपदा में CISF के दो जवान भी शहीद हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CM उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से फोन पर बातचीत कर राहत कार्यों की जानकारी ली।
उमर अब्दुल्ला ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी से बात कर मैंने हालात की जानकारी दी। हम केंद्र की मदद के लिए आभारी हैं।”

दर्दनाक कहानियाँ: किसी ने बच्चा बचाया, किसी ने पूरा परिवार खो दिया

पीड़ित राकेश शर्मा ने बताया कि जब आपदा आई, तो वो परिवार के साथ माता के दर्शन करने गए थे।

  • बच्चा हाथ से छूट गया

  • मलबा उन पर गिरा

  • पत्नी कहीं नहीं मिली

“मलबे से बाहर निकलने के बाद भी पत्नी नहीं मिली… बाद में मिली लेकिन वो हालत में नहीं थी।”

“परिवार के 12 में से 10 लापता हैं”

एक अन्य पीड़िता पुतुल देवी ने बताया:

“हम माता की यात्रा पर 14 लोग आए थे। अब केवल दो ही बचे हैं। पति और बच्चे अब तक नहीं मिले।”

“हर ओर सिर्फ डेड बॉडी ही थी”

एक बच्ची की मां ने कहा:

“हर ओर चीखें थीं। छोटे बच्चों की गर्दनें मुड़ी हुई थीं, किसी के पैर कटे हुए थे। मेरे पापा ने कई बच्चों को बचाया, लेकिन सबको नहीं बचा पाए।”

फारूक अब्दुल्ला की आशंका: “500 से ज़्यादा दबे हो सकते हैं”

JKNC प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने मीडिया से कहा कि उन्हें आशंका है कि:

“किश्तवाड़ में 500 से अधिक लोग मलबे में दबे हो सकते हैं। सच्चाई इससे भी भयावह हो सकती है।”

कहां हुआ हादसा?

यह आपदा मचैल माता मंदिर के पास चशोटी गांव में हुई। कुछ ही मिनटों में पूरा इलाका जलमग्न हो गया, और बड़े-बड़े पत्थर और पेड़ तक बह गए।

किश्तवाड़ की यह घटना हमें एक बार फिर याद दिलाती है कि प्राकृतिक आपदाएं चेतावनी नहीं देतीं। सरकार को चाहिए कि वह भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और रेस्पॉन्स सिस्टम विकसित करे।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि मलबे में दबे लोगों को कब तक सुरक्षित निकाला जा सकेगा

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